कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर आज अहोई अष्टमी का व्रत देशभर में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। यह व्रत खासतौर से उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय है, जहां माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और जीवन में तरक्की के लिए दिनभर निर्जला उपवास करती हैं। इस पर्व का धार्मिक महत्व पुराणों में भी उल्लेखित है, और इसे संतान सुख की प्राप्ति और उनके जीवन में किसी भी प्रकार के संकट से बचाने के लिए शुभ माना गया है।
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सुबह से ही मंदिरों में पूजा-अर्चना और भीड़
अहोई अष्टमी के अवसर पर सुबह से ही मंदिरों, देवी-स्थलों और घरों में पूजा-पाठ का सिलसिला शुरू हो गया है। महिलाएं सवेरे स्नान कर साफ कपड़े पहनती हैं और अहोई माता की प्रतिमा या अहोई की चित्रकारी को दीवार पर स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करती हैं। कई स्थानों पर विशेष कथा का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें अहोई माता की कथा सुनकर व्रत का पारण किया जाता है। श्रद्धालुओं में इस दिन का उल्लास और बहनापूर्ण माहौल देखना आम है।
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अहोई व्रत की मुख्य परंपरा
इस व्रत में अहोई माता का चित्र दीवार पर बनाया जाता है या खरीदी हुई तस्वीर लगाई जाती है। चित्र में सात छोटे-छोटे गह्वरों के साथ मां अहोई और एक सुअर के बच्चे का चित्र होता है, जो इस पर्व का प्रमुख प्रतीक है। व्रत करने वाली महिलाएं संध्या समय तारे को देख कर अहोई माता की पूजा करती हैं। कई परिवारों में गोधूलि वेला के बाद पूरे परिवार के सदस्य बड़ी श्रद्धा से पूजा में शामिल होते हैं। अहोई अष्टमी का यह विशेष स्वरूप सात संतानों और उनकी रक्षा से जुड़ी धार्मिक मान्यता में गहराई से जुड़ा है।