High Court said people who call themselves Hindus will cease to exist- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्ट न्यायपालिका में महत्वपूर्ण फेरबदल कर दिया है। ताजा फैसला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन के स्थानांतरण से जुड़ा है। अब कॉलेजियम ने सिफारिश की है कि न्यायमूर्ति श्रीधरन को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की बजाय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाए।
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केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर बदला गया फैसला
महत्वपूर्ण बात यह है कि अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पहले न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन का स्थानांतरण छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के लिए सिफारिश किया था। हालांकि, सरकार की ओर से पुनर्विचार का अनुरोध आने के बाद कॉलेजियम ने 14 अक्टूबर 2025 को अपनी सिफारिश में बदलाव किया और अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेजने का प्रस्ताव किया।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन का करियर सफर
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन ने अपनी वकालत की शुरुआत 1992 में दिल्ली में की थी। 1997 तक वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम के चेम्बर में काम किया और बाद में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। 2001 में वे इंदौर चले गए और वहां भी स्वतंत्र वकालत के साथ-साथ सरकारी पैनल अधिवक्ता और एडवोकेट जनरल कार्यालय से जुड़े रहे। 2016 में वे मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 2018 में स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए।
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हाल की पोस्टिंग और तबादलों का सिलसिला
पिछले वर्षों में न्यायमूर्ति श्रीधरन को कई बार स्थानांतरण का सामना करना पड़ा। अप्रैल 2023 में उन्होंने अपनी बेटी के मध्य प्रदेश में वकालत शुरू करने के कारण जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय में स्थानांतरण का अनुरोध किया था। मार्च 2025 में वे पुनः मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय लौटे। इसके बाद अगस्त 2025 में छत्तीसगढ़ स्थानांतरण की सिफारिश की गई थी, जिसमें अब संशोधन कर दिया गया है।
कॉलेजियम की भूमिका और सरकार का प्रभाव
फैसले में खास बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि सरकार की ओर से पुनर्विचार की मांग पर ही स्थानांतरण के दिशा-निर्देश बदले गए। न्यायिक स्वतंत्रता के संदर्भ में यह स्वीकारोक्ति न्यायपालिका और कार्यपालिका के संबंधों पर एक नई बहस को जन्म देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, हाल के वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा ऐसे स्थानांतरण प्रस्तावों पर खुलकर आपत्ति जताने की घटनाएं बढ़ी हैं, जिससे न्यायाधीशों की तैनाती और स्थानांतरण की पारदर्शिता तथा स्वतंत्रता को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं