chhath puja arghya timing arghya muhurat- छठ महापर्व का शुभारंभ इस वर्ष शनिवार, 25 अक्टूबर से हुआ, जिसे ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है। सनातन समाज में इस दिन का विशेष स्थान है क्योंकि व्रती गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान कर धार्मिक संकल्प लेते हैं। स्नान के बाद पूजा स्थल और रसोई की सफाई कर, लौकी की सब्जी, चने की दाल और सादा चावल जैसे सात्विक भोजन को प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है। इस दिन व्रती एक बार देवी छठी मैया और सूर्य देव का स्मरण कर अपना व्रत आरंभ करते हैं, जिससे महापर्व की आस्था जन-मन में गहराती है।
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साधना और उपवास की शुरुआत
रविवार, 26 अक्टूबर को छठ का दूसरा दिन ‘खरना’ के रूप में मनाया जाता है, जब व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। सूर्यास्त के बाद स्नान के बाद नए वस्त्र धारण किए जाते हैं और शुद्धता के प्रतीक मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर, गेहूं के आटे की रोटी तथा मसाले रहित प्रसाद तैयार किया जाता है। यह प्रसाद सबसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित कर, फिर परिवार और पड़ोसियों के साथ बांटा जाता है। खरना के पश्चात व्रती 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत धारण करते हैं, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धि की मिसाल है।
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संध्या पूजा की दिव्यता
छठ महापर्व के तीसरे दिन, सोमवार 27 अक्टूबर को व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। छठ घाटों, नदियों के किनारे तथा जलाशयों में अद्भुत श्रद्धा का दृश्य बनता है, जहां महिलाएं समूह में सूर्यदेव की पूजा करती हैं। बांस की सूप, फल, ठेकुआ, नारियल और दीपक से सजी थाली के साथ भक्त ‘ऊं सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप कर पूरे परिवार और समाज की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। अर्घ्य अर्पण के बाद रातभर जागरण और छठी मैया के गीतों की मधुर आवाज वातावरण को भक्तिमय बना देती है।
महापर्व का चरम
अंतिम चरण मंगलवार, 28 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ मनाया जाएगा। छठ व्रतियों के 36 घंटे के कठोर उपवास का पारण इसी दिन होता है, जब भक्त सूर्योदय से पहले स्नान कर पुल, घाट, जलाशय या घर के आंगन में बनाए गए पूजा स्थल पर उपस्थित होते हैं। सूर्य देव और छठी मैया का आह्वान करते हुए, वे आरोग्य, शांति, संतान सुख और परिवार की समृद्धि की कामना करते हैं।
