राष्ट्रीय सुरक्षा में नया अध्याय राफेल लड़ाकू विमानों की ‘मेड इन इंडिया’ क्रांति

भारत की सुरक्षा व्यवस्था में विगत वर्षों में लगातार बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. अब भारतीय वायुसेना के बेड़े में ‘मेड इन इंडिया’ राफेल लड़ाकू विमान शामिल होने जा रहे हैं, जिससे देश की रक्षा प्रणाली को एक नई ऊंचाई मिलेगी. देश की सीमा सुरक्षा व सैन्य शक्ति में यह कदम मील का पत्थर साबित हो सकता है.

भारत में विदेशी तकनीक का मेल

फ्रांस की प्रतिष्ठित कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने भारत में अपनी पहली मेंटेनेंस कंपनी स्थापित कर दी है, जो राफेल समेत फ्रांसीसी मूल के लड़ाकू विमानों की मरम्मत व रखरखाव का कार्य देख रही है। इस मेगा प्रोजेक्ट में टाटा जैसी भारतीय एयरोस्पेस कंपनियों का सहयोग भी शामिल है। दोनों कंपनियों ने हाल ही में कई उत्पादन स्थानांतरण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनके तहत राफेल के ढांचे (फ्यूज़लेज) का निर्माण अब भारत में ही किया जाएगा।

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मेगा डील का प्रभाव

भारतीय वायुसेना ने हाल ही में 114 नए राफेल विमान की मांग की है। अनुमान है, यह करार 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का रहेगा, जिसमें 60% से ज्यादा स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल किया जाएगा। इससे न सिर्फ तकनीकी आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि देश में बृहद रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। हैदराबाद में आने वाले वर्षों में राफेल के कलपुर्जों का निर्माण सुरु हो जाएगा, जिससे स्थानीय उद्योग को नई दिशा मिलेगी।

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भारतीय एयरोस्पेस में टाटा की प्रमुख भूमिका

राफेल के निर्माण के लिए टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड का योगदान अतुलनीय माना जा रहा है। डसॉल्ट एविएशन ने स्वयं स्वीकार किया कि टाटा के सहयोग से भारत का एयरोस्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण निवेश बन जाएगा। नए राफेल विमानों में कई भारतीय कंपनियों के उपकरण और तकनीक शामिल होने वाली हैं।

वर्तमान क्षमता और भविष्य की योजनाएँ

अभी भारतीय वायुसेना के पास 36 राफेल विमान हैं, और नौसेना के लिए भी उतने ही राफेल ऑर्डर किए गए हैं। नए समझौतों के बाद कुल संख्या 176 होगी। भारत सरकार ने हाल ही में अपनी नौसेना के लिए भी 26 राफेल-मरीन जेट्स का करार किया है, जिनकी लागत 63,000 करोड़ रुपये बताई गई है। आगामी वर्षों में सुखोई-30 एमकेआई, राफेल और स्वदेशी लड़ाकू विमान भारतीय सेनाओं की रीढ़ बनेंगे।

सुरक्षा के नए आयाम: सीमा पर बढ़ती चुनौतियाँ

सीमा पर लगातार बढ़ती चुनौतियों के मद्देनज़र ये लड़ाकू विमान भारत के लिए अनिवार्य साबित होंगे। इनमें लंबी दूरी तक निशाना साधने वाली एयर-टू-ग्राउंड मिसाइलें, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और अत्याधुनिक एविओनिक्स शामिल होंगे, जिसमें 60% स्वदेशी कंपोनेंट्स का उपयोग होगा। इस प्रोजेक्ट के सफल होने पर भारत पांचवीं पीढ़ी के स्वदेशी लड़ाकू विमान निर्माण की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ेगा, जिससे देश की संप्रभुता पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो सकेगी।

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