सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल विधायक होने के कारण अलग ट्रायल नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितंबर 2025 को हरियाणा के कांग्रेस विधायक मममन् खान के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया जिसमें विधायक होने के कारण अलग ट्रायल चलाने का निर्देश दिया गया था। यह मामला 2023 की नूह हिंसा से जुड़ा था, जिसमें कई आरोपियों पर दंगा भड़काने के आरोप थे।

समानता और निष्पक्षता के सिद्धांत की पुष्टि

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी आरोपी का केवल उसकी राजनीतिक हैसियत के कारण अलग ट्रायल चलाना संविधान के अनुच्छेद 14 में सुरक्षा दी गई समानता के अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 21 के तहत सशक्त और न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार है, परंतु यह अधिकार तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक निष्पक्षता का हनन न हो।

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जुड़ा हुआ मामला, जुड़ी हुई सुनवाई

मुकदमों के संयुक्त ट्रायल का फैसला विशेष रूप से जरूरी होता है जब आरोपी एक ही घटना या लेन-देन में संलिप्त हों। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने गलत आकलन किया क्योंकि सबूत अविभाज्य थे और कोई ऐसा तथ्य नहीं था, जो अलग ट्रायल को उचित ठहरा सके।

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न्याय की गति और संसाधनों की बचत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग ट्रायल करने से गवाहों को बार-बार बुलाना पड़ेगा जो न्याय में देरी करेगा और संसाधनों की बर्बादी होगी। ऐसे में संयुक्त ट्रायल न्याय की दृष्टि से हितकर है और साथ ही निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है।

राजनीतिक पद से अलग नहीं होता ट्रायल का अधिकार

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधायक होने का मतलब विशेषाधिकार नहीं है। सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं और इसी सिद्धांत को बुलंद रखना न्यायिक प्रणाली की जिम्मेदारी है। यह निर्णय संसद में चुने गए प्रतिनिधियों और न्यायिक प्रक्रिया के बीच संतुलन का उदाहरण है।

केस ट्रायल कोर्ट को वापस भेजा गया

सुप्रीम कोर्ट ने मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस सौंपते हुए निर्देश दिए कि मममन् खान और अन्य आरोपियों का संयुक्त ट्रायल किया जाए। साथ ही अदालत ने कहा कि यदि अलग ट्रायल से किसी आरोपी को वास्तविक नुकसान होता है तब ही हस्तक्षेप उचित होगा।

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