100 रुपये की रिश्वत का आरोप, 39 साल तक रहे जेल उसके बाद हुए दोषमुक्त.

रायपुर के 83 वर्षीय जागेश्वर प्रसाद अवधिया ने 39 साल तक झूठे रिश्वत के आरोप का सामना किया। साल 1986 में मध्य प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के बिल सहायक के पद पर कार्यरत जागेश्वर पर महज़ 100 रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगा दिया गया था। बावजूद इसके विजिलेंस टीम ने उन्हें रंगे हाथों गिरफ्तार किया और आरोप की साजिश साबित करने के तमाम प्रयासों के बावजूद ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दे दिया.

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नौकरी, सम्मान और परिवार की छिनती जिंदगी

गिरफ्तारी के बाद जागेश्वर की पूरी दुनिया बदल गई। वे 1988 से 1994 तक निलंबित रहे, फिर उनका तबादला रीवा कार्यालय में कर दिया गया। उनके वेतन का आधा हिस्सा छिन गया, प्रमोशन और इंक्रीमेंट रुक गए। बच्चों की पढ़ाई रुक गई, समाज ने उपेक्षा की और परिवार को रिश्वतखोर का तमगा दे दिया गया। आस-पड़ोस वालों ने बातचीत बंद कर दी। इसी तनाव में उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया, और बच्चों का भविष्य प्रभावित हुआ। जागेश्वर ने बड़ी मुश्किल से मेहनत करके अपने परिवार का पालन पोषण किया.

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39 साल की लंबी कानूनी लड़ाई

जागेश्वर ने हार नहीं मानी। उन्होंने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ उच्चतर न्यायालयों में अपील की और बार-बार अपनी बेगुनाही की दुहाई दी। केस लंबा चलता रहा, कई बार तारीखें आगे बढ़ती गईं, और न्याय पाने की उम्मीद धुंधली होती चली गई। बावजूद इसके उन्होंने न्याय व्यवस्था में भरोसा बनाए रखा। वकील की दलीलों, गवाहों की सुनवाई और सबूतों की जांच के बाद आखिरकार छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 24 सितंबर 2025 को उन्हें पूरी तरह से निर्दोष ठहरा दिया.

कोर्ट के फैसले का महत्व

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि अभियोजन पक्ष रिश्वत मांगने के पर्याप्त साक्ष्य पेश करने में विफल रहा। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए साफ किया कि झूठे आरोप में किसी व्यक्ति की जिंदगी बर्बाद करने का अधिकार किसी को नहीं है। न्यायमूर्ति बिभू दत्त गुरु की एकल पीठ ने फैसला सुनाते हुए यह संदेश दिया कि न्याय में देरी न्याय से वंचित करना है.

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