दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला को कड़ा सबक सिखाया है, जिसने अपने पहले पति के निधन के बाद दूसरी शादी कर ली और फिर अपने मृत पति के बुजुर्ग सास-ससुर पर कई मुकदमे दर्ज करवा दिए। अदालत ने कहा कि यह न्याय की मांग नहीं बल्कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग और सास-ससुर को परेशान करने की सोंची-समझी साजिश है।
पति की मृत्यु के बाद भी सास-ससुर पर लगातार मुकदमे
यह मामला इसलिए खास है क्योंकि महिला के पहले पति की मौत हो चुकी थी और महिला ने दूसरी शादी कर अपनी नई जिंदगी शुरू की थी। फिर भी, बदले की भावना से उसने अपने सास-ससुर के खिलाफ दहेज, घरेलू हिंसा समेत कई मुकदमे दर्ज कराए, जिससे वे वृद्धावस्था में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रहे।
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कोर्ट ने महिला के रवैये को बताया गैरजिम्मेदाराना
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि महिला का यह व्यवहार न्यायालय की प्रक्रियाओं का स्वार्थपूर्ति के लिए दुरुपयोग है। पति के मरने के बाद भी बुजुर्ग सास-ससुर को परेशान करना न सिर्फ गलत है बल्कि उनकी गरिमा का अपमान भी है। अदालत ने इसे कानूनी उत्पीड़न का स्पष्ट उदाहरण माना।
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सोंची-समझी साजिश का खुलासा
जस्टिस अरुण मोगा की पीठ ने स्पष्ट किया कि महिला की यह हरकत न्याय की मांग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित योजना है जिसमें बुजुर्गों को बार-बार कोर्ट में घसीटा जा रहा है। महिला ने दूसरी शादी तो कर ली, पर फिर भी पहले पति के परिवार को परेशान करना जारी रखा। अदालत ने निचली अदालत के उन आदेशों को भी रद्द कर दिया जो महिला के पक्ष में थे।
उत्पीड़न छोड़ न्याय की उम्मीद करें
निचली अदालतों में महिला ने घरेलू हिंसा के तहत सास-ससुर को कई बार कोर्ट में तलब किया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यह कोई न्यायिक कार्रवाई नहीं, बल्कि उत्पीड़न का एक रूप है। अदालत ने निचली अदालतों को भी फटकार लगाई कि इस तरह के मामलों की जांच और आदेश देते समय अत्यधिक सावधानी बरतें।
अदालत का समय बर्बाद करने पर जुर्माना
न्यायमूर्ति अरुण मोगा ने कहा कि महिला ने निजी स्वार्थों के लिए कानूनी नियमों का दुरुपयोग कर बुजुर्ग परिवार को परेशान किया और अदालत का समय भी बेवजह बर्बाद किया। कोर्ट ने महिला पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया ताकि भविष्य में इस तरह की गलतियों से बचा जा सके।
पूरी घटना का पृष्ठभूमि
मामले की शुरुआत तब हुई जब निचली अदालत ने महिला की याचिका पर उसके पूर्व पति के परिवार को घरेलू हिंसा के आरोपों में समन किया। बुजुर्ग सास-ससुर ने इन आदेशों को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। पीठ ने यह याचिका स्वीकार कर सुनवाई की और महिला के पक्ष में आए आदेशों को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने साफ किया कि मुकदमेबाजी का शौक रखने वाले लोगों को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
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