संजीव चतुर्वेदी से जुड़े मामलों में अब तक कुल 15 न्यायाधीशों ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया है, जो भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक अनोखा रिकॉर्ड है। नवीनतम घटना में, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश रविंद्र मैठाणी ने 26 सितंबर 2025 को संजीव चतुर्वेदी द्वारा केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के सदस्यों के खिलाफ दाखिल अवमानना मुकदमे की सुनवाई से स्वयं को मुक्त कर लिया। न्यायाधीश मैठाणी ने आदेश में केवल इतना कहा कि मामला किसी अन्य बेंच को सौंपा जाए, जिसमें वे सदस्य न हों, लेकिन कारण नहीं बताया गया।
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संजय चतुर्वेदी की कानूनी लड़ाई की पृष्ठभूमि
संजीव चतुर्वेदी 2002 बैच के भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी हैं और भ्रष्टाचार का खुलासा करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किए जा चुके हैं। परंतु उनके द्वारा दायर किए गए शिकायतों और केसों के चलते उनके खिलाफ विभिन्न स्तरों पर कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न हुई हैं, जिनके सुनवाई की प्रक्रिया में लगातार न्यायाधीशों का पीछे हटना न्यायिक व्यवस्था की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
तीन उच्च न्यायालय के जजों का अलग होना
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में संजीव चतुर्वेदी के मामलों से खुद को अलग करने वाले ये तीसरे न्यायाधीश हैं। इससे पहले, मई 2023 में न्यायाधीश राकेश थापलियाल ने एक मूल्यांकन रिपोर्ट से जुड़े मामले में खुद को हटाया था, और फरवरी 2024 में न्यायाधीश मनोज तिवारी ने केंद्रीय डेपुटेशन से जुड़े मामले की सुनवाई से अलगाव जताया था। इन तीनों ने अपनी अलगाव की कोई स्पष्ट वजह साझा नहीं की है।
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उच्चतम न्यायालय और कैट के जज भी शामिल
संजीव चतुर्वेदी के मामलों में केवल उच्च न्यायालय ही नहीं, दो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी सुनवाई से अलग हो चुके हैं। साथ ही, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के कई न्यायाधीश और इसके अध्यक्ष भी इस विवादास्पद मामले में अपनी भूमिका से हटा दिए गए हैं। ऐसा अब तक किसी एक व्यक्ति के मामले में नहीं देखा गया।