करवा चौथ हिंदू धर्म का एक बेहद खास व्रत है जो हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से सूर्योदय से लेकर चंद्रमा दर्शन तक निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इस व्रत की परंपरा शुरू की थी, इसीलिए इसे बेहद पवित्र और शुभ माना जाता है।
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करवा चौथ पूजा थाली की अहमियत और विशेष सामग्री
करवा चौथ की पूजा थाली में कई पारंपरिक और धार्मिक महत्व वाली वस्तुएं होती हैं, जो पूजा की विधि को संपूर्ण बनाती हैं। पूजा थाली में मुख्य रूप से मिट्टी या तांबे का करवा (कलश) होता है, जिसे जल से भरकर रखा जाता है। इसके साथ धूपबत्ती या मिट्टी का दीपक, सिंदूर, कुमकुम, हल्दी, अक्षत (चावल), पानी का लोटा, पान के पत्ते, सुपारी, फूल, और मिठाईयाँ शामिल होती हैं। छलनी पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जिससे चंद्रमा और पति का मुख देखती हैं। पूजा की थाली में करवा माता और गणेश जी की तस्वीर भी रखी जाती है। इन सभी वस्तुओं का धार्मिक महत्व है और ये सुख-शांति, समृद्धि और पति की लंबी आयु का प्रतीक मानी जाती हैं।
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सरगी का महत्व और पारंपरिक चलन
करवा चौथ से पहले सुहागरात की शुरुआत सरगी के साथ होती है, जो सास द्वारा बहू को सूर्योदय से पहले दी जाती है। इस सरगी में फल, मेवे, हलवा या खीर, मिठाइयां, और कभी-कभी पका हुआ भोजन भी शामिल होता है। इसके अलावा, बहू को पारंपरिक पहनावे जैसे साड़ी, चूड़ियां, सिंदूर, और अन्य श्रृंगार सामग्री भी सास देती हैं। सरगी का उद्देश्य व्रत के दौरान ऊर्जा का संचार करना और दिनभर निर्जला व्रत रखने में मदद करना होता है। इसे एक शुभ और प्रेमपूर्ण परंपरा माना जाता है जो परिवार के संबंध को मजबूत करती है।