अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने चीन के दावों और हालिया नाम बदलने की कोशिशों के बीच स्पष्ट किया है कि अरुणाचल प्रदेश की 1,200 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा चीन से नहीं, बल्कि तिब्बत से लगती है। खांडू ने यह बात एक साक्षात्कार में कही, जब उनसे पूछा गया कि राज्य की सीमा चीन से लगती है या तिब्बत से। उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब चीन ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की थी, जिसे भारत ने सख्ती से खारिज कर दिया।
India-China relations- ऐतिहासिक और भौगोलिक तथ्य: तिब्बत से जुड़ी सीमा
मुख्यमंत्री खांडू ने अपने बयान में ऐतिहासिक तथ्यों का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि 1914 के शिमला समझौते के तहत अरुणाचल प्रदेश की सीमा तिब्बत से ही मानी गई थी। खांडू ने स्वीकार किया कि आज तिब्बत चीन के अधीन है, लेकिन मूल रूप से यह सीमा तिब्बत के साथ ही साझा की जाती है। उन्होंने बताया कि अरुणाचल प्रदेश तीन देशों—भूटान (150 किमी), तिब्बत (1,200 किमी) और म्यांमार (550 किमी)—से सीमा साझा करता है।
चीन की ‘नाम बदलने’ की रणनीति और भारत का जवाब
चीन ने हाल के वर्षों में अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री खांडू ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है, चीन पहले भी पांच बार राज्य के स्थानों के नाम बदलने का प्रयास कर चुका है। भारत सरकार और विदेश मंत्रालय ने हर बार चीन की इन कोशिशों को सिरे से खारिज किया है और स्पष्ट किया है कि नाम बदलने से सच्चाई नहीं बदलती। भारत ने अरुणाचल प्रदेश को अपना अभिन्न हिस्सा बताया है और चीन के दावों को हास्यास्पद करार दिया है।
सीमा विवाद और रणनीतिक महत्व
अरुणाचल प्रदेश की सीमा को लेकर भारत और चीन के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण तिब्बत” कहता है और उस पर दावा करता है, जबकि भारत इसे अपने पूर्वोत्तर राज्य के रूप में प्रशासित करता है। सीमा का स्पष्ट सीमांकन न होने और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के मुद्दे के कारण दोनों देशों के बीच समय-समय पर तनाव बढ़ता रहा है। तवांग मठ, जल संसाधन और खनिज संपदा जैसे कारण भी इस क्षेत्र को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं।
चीनी बांध और जल संकट की चिंता
मुख्यमंत्री खांडू ने चीन द्वारा यारलुंग सांगपो नदी पर बनाए जा रहे विशाल बांध को ‘वाटर बम’ करार दिया। उन्होंने कहा कि यह परियोजना न सिर्फ सैन्य दृष्टि से, बल्कि स्थानीय जनजातियों और आजीविका के लिए भी बड़ा खतरा है। चीन ने इस परियोजना के लिए अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिससे भविष्य में जल संकट की आशंका और बढ़ जाती है।