Diwali 2025 Lakshmi Puja muhurat time and date-प्रिय साधक, दीपोत्सव की संध्या को मन को स्थिर कर लक्ष्मी-गणेश का स्मरण कीजिए, क्योंकि अमावस्या-स्पर्श के साथ प्रदोषकाल में किया गया पूजन दीर्घकालिक सौभाग्य और गृह-स्थैर्य का मूलाधार माना गया है। इस वर्ष तिथि-द्वय से जो भ्रम उत्पन्न होता है, उसका समाधान शास्त्रीय नियम और स्थानीय परम्परा दोनों का सम्मान करते हुए सहज रूप से किया जा सकता है।
मुख्य मुहूर्त
आप लक्ष्मी-पूजन सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को प्रदोषकाल में सायं 7:08 से 8:18 बजे IST के बीच आरम्भ करें; यही गृहस्थों के लिए सहज और फलदायक खिड़की मानी गई है। इसी संध्या वृषभ (स्थिर) लग्न लगभग 7:08 से 9:03 बजे तक उपलब्ध रहता है, जिससे पूजन-फलों की स्थिरता का संकेत और भी दृढ़ होता है।
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अमावस्या-स्पर्श का नियम
अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर 3:44 अपराह्न से 21 अक्टूबर 5:54 अपराह्न तक रहने से तिथि-द्वय प्रकट है, पर नियमतः वही दिवस मुख्य माना जाता है जिस दिन प्रदोष में अमावस्या विद्यमान हो। यदि आपके नगर की परम्परा सूर्यास्त-भेद के कारण 21 अक्टूबर का संकेत देती हो, तो स्थानीय मान्य नियम का सम्मान रखकर उसी अनुसार निर्णय लें।
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प्रदोष-काल का वैदिक संकेत
गृहस्थों के लिए प्रदोष-काल का पूजन श्रेष्ठ माना गया है, जबकि महानिशीथ काल तांत्रिक साधना के लिए उपयुक्त समझा जाता है। आप प्रदोष में स्थिर-लग्न का योग पाकर दीप-न्यास, श्रीयन्त्र-आराधना और संकल्प को अधिक सिद्धिप्रद बना सकते हैं।
गृह-सज्जा और शौच
दिन में आप गृह-प्रक्षालन कर द्वार पर आम-पल्लव-तोरण और मंगल-रंगोली रचिए, जिससे सत्त्व-गुण की वृद्धि और शुभ-आमंत्रण साथ-साथ फले। पूजामण्डप को पूर्वोन्मुख या उत्तराभिमुख रखकर लक्ष्मी-गणेश की शुद्ध आसन पर प्रतिष्ठा हेतु सामग्री सुव्यवस्थित कीजिए।
शास्त्रोक्त पूजन-विधि
आप प्रथम गणपति-वन्दना करें, ततः लक्ष्मी-आवाहन कर श्रीसूक्त या कनकधारा-पाठ के साथ “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” जप कीजिए। खील-बताशा, पुष्प, स्वच्छ नाणक, फल-मिष्ठान्न अर्पित कर धूप-दीप-नैवेद्य, अष्टोत्तर-नामावलि और आरती से पूजन सम्पन्न कीजिए।
सौभाग्य-वर्धक उपाय
आप द्वार पर घृत-दीप और घर के कोनों में तिल-तैल दीप स्थापित कर दरिद्र-शमन का संकेत सुदृढ़ करें। ईशान-कोण में अखण्ड दीप, लक्ष्मी-पदचिह्नों की अन्तराभिमुख रचना और धन-स्थान पर श्रीयन्त्र का शुद्ध-न्यास गृह-स्थैर्य और समृद्धि को पुष्ट करता है।
व्यापारी-समृद्धि विधान
यदि आप व्यापारी हैं, तो चोपड़ा-पूजन/नई बहियों का उद्घाटन, लेखनी-पूजन और कुबेर-मन्त्र-जप से नव-वित्त-चक्र का मंगल आरम्भ कीजिए। प्रतिष्ठान-पूजन, प्रसाद-वितरण और संकल्प-लेखन को इसी प्रदोष-खिड़की में सम्पन्न कर शुभ-फलनिष्ठ शुरुआत सुनिश्चित करें।
आचरण और दान
आप कलह, अपवित्र आचरण और अनावश्यक ऋण-ग्रहण से विरत रहकर संध्या उपरान्त दीपदान, अन्न या वस्त्र-दान का संकल्प लें। पूजान्ते परिवार-सहित आरती और प्रसाद-सेवन से गृह-ऊर्जा का सत्त्व-वृद्धि और मंगलभाव का स्थायित्त्व बनाए रखें।
क्षेत्रीय परम्परा का सम्मान
यदि आपके क्षेत्र के पंचांग या प्रमुख मंदिर 21 अक्टूबर का निर्देश दें, तो समाज-समन्वय और लोकाचार की दृष्टि से उसे ही ग्रहण कीजिए। तथापि मूल नियम यही साधिए कि प्रदोष में अमावस्या-स्पर्श और उपलब्ध स्थिर-लग्न के संग लक्ष्मी-आराधना हो, ताकि फल स्थिर, सौम्य और चिरस्थायी बने।



