How to deal with a false POCSO case-झूठा मुकदमा एक धीमा जहर की तरह होता है जब किसी व्यक्ति के ऊपर झूठा मुकदमा हो जाता है तो वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाता है कि उससे निकलना लगभग उसके लिए कुछ दिनों तक तो नामुमकिन ही होता है अगर वह मुकदमा बलात्कार और पॉस्को का हो जाए तो यह किसी व्यक्ति के लिए नरक से कम नहीं होता|

How to deal with a false POCSO case-अंधेरे में रोशनी
यहाँ पर जब सभी और अंधेरा दिखाई देता है तो ऐसी स्थिति में माननीय न्यायालयों की कुछ जजमेंट है जो कि उस व्यक्ति को न्याय की रौशनी की ओर ले जाते हैं ऐसा ही एक निर्णय है माननीय दिल्ली हाई कोर्ट का जिसके बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे और कैसे इस निर्णय का उपयोग करके अगर आपके पास या किसी भी व्यक्ति के ऊपर झूठा मुकदमा हुआ है पॉक्सो या बलात्कार के इससे संबंधित तो आप इस निर्णय के आधार पर उस व्यक्ति को कुछ राहत दे सकते हैं|

How to deal with a false POCSO case-क्या है पूरा मामला
दिल्ली हाई कोर्ट के पास सहजन अली वर्सिस स्टेट के मामले में एक याचिका लगी जिसमें की परिवारजनों के द्वारा की शिकायत दर्ज करवाई गई थी कि उनकी 14 साल की बेटी को आरोपी के द्वारा किडनैप कर लिया गया था और फिर किराये का रूम लेकर उसके साथ बलात्कार किया गया था इस आधार पर आरोपी के खिलाफ़ पॉक्सो एक्ट तथा आईपीसी की धारा 376 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था इसके साथ ही ट्रायल कोर्ट के द्वारा आरोपी को दोषी करार दिया गया था जिसकी अपील माननीय दिल्ली हाईकोर्ट में की गई थी|

How to deal with a false POCSO case-दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
दिल्ली हाई कोर्ट के द्वारा इस याचिका का निपटारा करते हुए एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही गई और निर्णय भी दिया गया यह कहा गया कि पीड़िता के बयान में जो बातें सामने आई है उसमें पीड़िता ने यह कहा है कि आरोपी के द्वारा उसके साथ संबंध बनाए गये यहाँ पर समझने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो आईपीसी 376 और पॉक्सो एक्ट में बलात्कार की परिभाषा है वह समान हैं लिंग का योनि में अगर प्रवेश होता है तभी बलात्कार माना जाएगा और बलात्कार की स्थिति और धाराएं निर्मित होंगी और संबंधित आरोपी के ऊपर अभियोग स्थापित किया जा सकेगा लेकिन यहाँ पर ऐसा नहीं हुआ था|

How to deal with a false POCSO case-संबंध बनाने का आशय
संबंध बनाने का जो आशय था उसने ये डिफाइन नहीं किया गया था कि आरोपी के द्वारा लड़की के साथ में क्या किया गया क्या उसके साथ ज़ोर जबरदस्ती की गई या फिर उसके साथ में यौनाचार किया गया अगर यहाँ पर स्पष्टता रही होती तो संबंधित व्यक्ति को इसका लाभ नहीं मिल पाता लेकिन लड़की के बयान में इस बात की स्पष्टता नहीं थी कि उसके साथ में क्या ज़ोर जबरदस्ती करते हुए विभिन्न प्रकार योनिक गतिविधियाँ की गई अथवा नहीं|
How to deal with a false POCSO case-मेडिकल परीक्षण भी अत्यंत महत्वपूर्ण
मेडिकल परीक्षण में भी यह बात साबित हुई कि लड़की के आंतरिक अंगों पर किसी भी प्रकार की कोई चोट नहीं थी और स्पर्म का भी किसी भी प्रकार से कोई भी संपर्क लड़की के में नहीं पाया गया जैसे की अभी साबित होता है कि पेनिट्रेशन नहीं हुआ है और जब पेनिट्रेशन नहीं हुआ है तो बलात्कार का मामला ही नहीं बनता|
How to deal with a false POCSO case-आरोपी के साथ क्या हुआ
फिलहाल सभी तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए माननीय दिल्ली हाइकोर्ट ने संबंधित आरोपी को दोषमुक्त कर दिया और उसे बाइज्जत बरी करते हुए रिहा कर दिया यहाँ पर जो सबसे बड़ी बात निकलकर सामने आई थी वह लड़की के बयान में और स्पष्टता थी और यही स्पष्टता तमाम केस में होती है और इन्हीं को देखते हुए ट्रायल कोर्ट सामने वाले व्यक्ति को सजा तो सुना देती है लेकिन अगर ये मामला हाईकोर्ट में जाता है तो वो सजा रद्द भी हो जाती है सुप्रीम कोर्ट में अगर ये मामला जाता है तो सुप्रीम कोर्ट का इस मामले पर क्या दृष्टिकोण रहेगा ये देखना अभी शेष है|
अगर आप बलात्कार या पॉक्सो में आरोपी है तो आपके लिए लाभ
इस केस से आप ये सीख सकते हैं कि अगर आप पॉक्सो या बलात्कार के आरोपी हैं तो जो लड़की यानी की पीड़िता हैं वह आपके विरुद्ध क्या बयान दे रही हैं?क्या वह स्पष्ट रूप से यह कह रही है कि आपने उसके साथ में पेनिट्रेशन किया है या फिर वो ये कह रही है कि संबंध बनाया गया है या फिर संबंध बनाने का प्रयास किया गया है या फिर ज़ोर जबरदस्ती की गई है कानून में एक-एक शब्द का अलग-अलग अंतर होता है और उन्हीं शब्दों के आधार पर यह निर्धारित होती है कि सामने वाले की गति और स्थिति क्या होगी या उसे सजा होगी या फिर वो भरी होगा|
जो पीड़ित हैं उनके लिए काम की बात
पॉक्सो और बलात्कार के मामले में पीड़ित लोगों के लिए भी सबसे बड़ी बात यह है कि आप जब भी कोर्ट में बयान दिए तो एक एक शब्द को स्पष्ट रूप से बताए वहाँ पर आप अपने मन से कुछ भी ना कहें जो आपके साथ हुआ है वह सही तरीके से बताए अगर आपको सामने वाले को सजा करानी है तो सारी बाते पानी की तरह साफ होनी चाहिए अन्यथा की स्थिति में माननीय न्यायालय किसी भी व्यक्ति को 10 से 20 साल के लिए ऐसे ही सलाखों के पीछे नहीं भेजेगी चाहे आप के साथ कितना भी अन्याय हुआ हो लेकिन जब तक आप उसे माननीय न्यायालय के समक्ष रखेंगे नहीं तब तक आपको कोई फायदा नहीं होगा|