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How to do Pitru Tarpan at home step by step-कैसे करें घर पर पितृ तर्पण जानिए सम्पूर्ण शास्त्र विधि


How to do Pitru Tarpan at home step by step-हिंदू समाज में पितृ तर्पण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्मृति और कृतज्ञता की एक गहरी परंपरा है। हर वर्ष श्राद्ध पक्ष में जब लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हैं, तो मान्यता है कि उनके आशीर्वाद से परिवार में शांति और समृद्धि बनी रहती है। दिलचस्प यह है कि अगर समय या साधन की कमी हो, तो गंगा या किसी तीर्थस्थल पर जाए बिना भी घर पर सरल विधि से तर्पण संभव है।


पितरों का स्मरण क्यों है आवश्यक


धार्मिक मान्यताओं में कहा गया है कि श्रद्धा से किया गया तर्पण पितरों को संतुष्ट तो करता ही है, साथ ही हमारे जीवन की बाधाओं को भी कम करता है। यह एक तरह से कृतज्ञता जताने का माध्यम है, जहां इंसान यह स्वीकार करता है कि उसकी जड़ें, उसकी पहचान और उसकी उपलब्धियां उसके पूर्वजों से जुड़ी हुई हैं। यही कारण है कि आज के व्यस्त दौर में भी यह परंपरा कायम है।

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पितृ तर्पण का समय और विशेष अवसर


पंचांग के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा से अमावस्या तक के 15 दिन पितृ पक्ष कहलाते हैं। इन दिनों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करने और तर्पण की विधि करने का विशेष महत्व है। शास्त्र मानते हैं कि यही समय पितरों को स्मरण करने के लिए सबसे उपयुक्त है।

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घर बैठे आसान विधि


अगर आप घर पर ही तर्पण करना चाहें तो आपको बस कुछ सरल सामग्री चाहिए – एक पात्र में जल, थोड़े काले तिल, दूब या कुशा, और मन में अपने पितरों का स्मरण। एक स्वच्छ स्थान पर बैठकर, जल में तिल मिलाकर हाथ में लें और पितरों का नाम लेते हुए तीन बार अर्पित करें। मंत्र ज्ञात न हों तो भी “सर्वपितृ देवताय नमः” कहकर अर्पण करना शुभ माना गया है।


विधि के दौरान विशेष बातें


तर्पण करते समय मन की पवित्रता सबसे अहम है। दिशा का भी ध्यान रखें – उत्तर दिशा की ओर मुख करके तर्पण करना फलदायी माना गया है। यदि संभव हो तो परिवार के सभी सदस्य इसमें शामिल हों, क्योंकि यह केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामूहिक स्मृति का अवसर है।

अर्पण में तिल और दूध का महत्व


तर्पण में तिल का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि शास्त्रों में इसे पवित्र और तृप्तिकर बताया गया है। कई जगहों पर जल के साथ थोड़ी मात्रा में दूध भी अर्पित किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में भोजन दान अथवा जरूरतमंद को अन्नदान करना पितरों को तृप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है।

आधुनिक समय में परंपरा की भूमिका


आज जब लोग रोज़ी-रोटी के लिए घर से दूर रहते हैं, ऐसे में पितृ तर्पण परंपरा और परिवार को जोड़ने की कड़ी बन जाता है। यह अनुष्ठान हमें हमारी जड़ों की याद दिलाता है और यह संदेश देता है कि समृद्धि केवल मेहनत से नहीं, बल्कि पूर्वजों की स्मृति और आशीर्वाद से भी जुड़ी होती है।

एक सीख, जो आज भी प्रासंगिक है


धर्मशास्त्रों का यही निर्देश है – “पितरों की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है।” इसका भाव बिल्कुल स्पष्ट है कि पूर्वजों के प्रति सम्मान जताने से संतति का भविष्य सुरक्षित होता है। घर बैठे किया गया तर्पण भले ही संक्षिप्त हो, लेकिन उसकी आस्था और निष्ठा अनंत फल देने वाली कही गई है।

Tiwari Shivam

शिवम तिवारी को ब्लॉगिंग का चार वर्ष का अनुभव है कंटेंट राइटिंग के क्षेत्र में उन्होंने एक व्यापक समझ विकसित की है वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व दुनिया के नामी स्टार्टप्स के लिये भी काम करते हैं वह गैजेट्स ,ऑटोमोबाइल, टेक्नोलॉजी, स्पेस रिसर्च ,इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ,कॉर्पोरेट सेक्टर तथा अन्य विषयों के लेखन में व्यापक योग्यता और अनुभव रखते हैं|

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