अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर 25% टैरिफ लगाने का फैसला किया है, जो 1 अगस्त 2025 से लागू हुआ। यह कदम मुख्य रूप से भारत की रूस से ऊर्जा और रक्षा उपकरण खरीदने को लेकर उठाया गया है। हालांकि, इस टैरिफ के बावजूद भारत और अमेरिका के बीच दोस्ताना संबंध में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि व्यापारिक बातचीत और ऊर्जा आयात में वृद्धि का रुख देखने को मिला है।
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अमेरिका से ऊर्जा आयात में अभूतपूर्व बढ़ोतरी
पिछले एक साल में भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल का आयात 51 प्रतिशत बढ़ा दिया है। खासतौर पर वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में यह आयात $3.7 बिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुना है। जुलाई में आयात में और 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे अमेरिका की कुल कच्चे तेल आपूर्ति में हिस्सेदारी बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई है।
LNG और पेट्रोलियम उत्पादों का भी बढ़ा व्यापार
भारत ने अमेरिका से न केवल कच्चा तेल, बल्कि तरल प्राकृतिक गैस (LNG) और एलपीजी का आयात भी दोगुना कर दिया है। 2024-25 में एलएनजी आयात $2.46 बिलियन रहा, जो 2023-24 की तुलना में बहुत अधिक है। इसकी वजह अमेरिकी एलएनजी की प्रतिस्पर्धी कीमत और दीर्घकालिक सप्लाई के अवसर माने जा रहे हैं।
व्यापार घाटा व रणनीतिक बातचीत जारी
अमेरिका ने भारत के साथ विशाल व्यापार घाटा ($45.7 बिलियन) को टैरिफ लगाने का कारण बताया है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ताएं जारी हैं जिसमें भारत अमेरिकी बाजार में कृषि, कपड़ा एवं चमड़ा उत्पादों की पहुंच बढ़ाने पर जोर दे रहा है। इस प्रयास से व्यापार संतुलन बेहतर करने की कोशिश की जा रही है।
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टैरिफ से आर्थिक प्रभाव और भविष्य की राह
विशेषज्ञों का मानना है कि 25 प्रतिशत के टैरिफ से भारतीय कुछ उद्योगों—जैसे टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग—को विशेष नुकसान हो सकता है, जो GDP की वृद्धि दर में 20-40 बेसिस प्वाइंट तक असर डाल सकता है। फिर भी, वैश्विक स्तर पर और कई देशों में भी उच्च टैरिफ के कारण प्रतिस्पर्धा की स्थिति जटिल बनी हुई है।