Live news updates from Madhya Pradesh today-करवाचौथ से पहले उजड़ा सुहाग, पांच मृत, सात लापता

Live news updates from Madhya Pradesh today-दुर्गा प्रतिमा विसर्जन का उत्सव उटंगन नदी किनारे कुछ ही पलों में मातम में बदल गया, जहां ढोल-नगाड़ों की गूंज अचानक सिसकियों में दब गई और कई घरों की रोशनी बुझती चली गई। शुक्रवार तक पांच युवा नदी से निकाले जा चुके थे, सात अब भी लापता हैं, और गांव की गलियों में पसरी खामोशी किसी बड़े घाव की तरह धड़कती महसूस होती है।

गिरती शाम, बढ़ता जोखिम


जैसे-जैसे सांझ गहराती गई, श्रद्धा से भरे कदम अनजानी गहराइयों की ओर बढ़ते रहे और एक-एक कर कई युवक पानी की तेज़ धारा में फिसलते चले गए। किनारे पर खड़े परिजन folded hands के साथ बेबस होकर उसी लहर को देखते रहे, जो कुछ देर पहले पूजा की थाली के प्रतिबिंब से जगमगा रही थी।

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चंचल का टूटा स्वप्न
कुशियापुर की चंचल पहली करवाचौथ के लिए सोलह-सिंगार सहेज चुकी थीं, पूजा की थाली सजा ली थी और व्रत-कथा के पन्ने तकिया-किनारे रख दिए थे। रात ढली, मगर दीपक नहीं जला सुबह ने खबर दी कि पति भगवती अब वापस नहीं आएंगे, और आंसुओं की झड़ी ने हर शब्द को बेमानी कर दिया।

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भगवती की आखिरी खबर
शुक्रवार दोपहर नदी ने भगवती का पार्थिव शरीर किनारे लौटा दिया, उस क्षण समय जैसे रुका और आंगन में बैठी औरतों की धीमी सिसकियां अचानक तेज़ रोने में बदल गईं। किसी ने पानी का गिलास थमाया, किसी ने पीठ सहलाई, मगर सांत्वना का हर प्रयास उस शून्य के सामने छोटा पड़ता गया जो एक ही पल में घर के भीतर उतर आया था।

सन्नाटा और सवाल
जहां सुबह-सुबह आरती का सामूहिक स्वर उठता था, वहां अब थकी-सी खामोशी है और अर्धखुली दुकानों पर टिकती आंखें एक ही सवाल दोहराती हैं उत्सव और असावधानी का फासला इतना घातक कैसे हो गया। गलियों की रफ्तार धीमी है, दरवाजों पर जमा चप्पलें गवाही देती हैं कि गांव शोक की एक लंबी रात से गुजर रहा है।

लापता के लिए दुआ
परिजन नदी की धारा को टकटकी लगाए देखते हैं, हर उभरती परछाईं में अपने अपने बच्चे, भाई, पति का चेहरा तलाशते हैं। रेस्क्यू की नावें उम्मीद और डर के बीच हिलती हैं, और हर मिनट के साथ धैर्य की दीवार में एक नई दरार उतरती जाती है, फिर भी कोई भीतर-ही-भीतर चमत्कार की प्रार्थना से जुड़ा रहता है।

रिवाज़ बनाम जोखिम
विसर्जन के जुलूस में अक्सर नदी का मिज़ाज अनदेखा छूट जाता है एक कदम और, और अचानक पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है और भीड़ का भरोसा ताश के महल-सा ढह पड़ता है। यह त्रासदी याद दिलाती है कि आस्था की सबसे बड़ी रक्षा सावधानी है, और जल के सामने अनुशासन ही सच्ची आरती है।

दूर तक गूंजता मातम
पांच घरों में आग की राख अब ठंडी होकर धूसर हो चुकी है, सात घर नाम पुकारते-पुकारते थकते नहीं जैसे समय वहीं थम गया हो। करवाचौथ से पहले सजे हाथ आज सांत्वना की पकड़ में हैं, और उटंगन की धारा के साथ पूरे गांव का मन भी चुपचाप बहता जा रहा है।

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