First Muslim woman from Ladakh- लद्दाख की आबिदी आफरीन ने माउंट एवरेस्ट फतह कर रचा इतिहास!

लद्दाख की 21 वर्षीय आबिदी आफरीन ने 18 मई 2025 को माउंट एवरेस्ट फतह कर इतिहास रच दिया है। वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली लद्दाख की पहली मुस्लिम महिला बनी हैं। एनसीसी से जुड़ने के बाद आफरीन ने कठिन प्रशिक्षण और कई चयन प्रक्रियाएं पार कीं। सियाचिन जैसे दुर्गम स्थान पर भी उन्होंने कठोर प्रशिक्षण लिया। आफरीन का यह सफर साहस, मेहनत और आत्मविश्वास का प्रतीक है, जिससे लद्दाख और देश के युवाओं को प्रेरणा मिली है। उनकी सफलता से पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर है।

लद्दाख के लेह जिले की 21 वर्षीय आबिदी आफरीन ने 18 मई 2025 को माउंट एवरेस्ट फतह कर न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि पूरे लद्दाख और देश को गौरवान्वित किया है। आफरीन माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली लद्दाख की पहली मुस्लिम महिला बन गई हैं। एलीजर जोल्डन मेमोरियल कॉलेज की छात्रा आफरीन ने माउंट एवरेस्ट बॉयज एंड गर्ल्स एक्सपीडिशन 2025 में हिस्सा लिया था। उनका यह सफर साहस, मेहनत और दृढ़ संकल्प की मिसाल है।

First Muslim woman from Ladakh- बचपन से था बड़ा सपना

आफरीन का सपना बचपन से ही बड़ा था। वह बताती हैं कि स्कूल के दिनों में माउंट एवरेस्ट के बारे में पढ़ते हुए उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वह खुद भी उस शिखर तक पहुंचेंगी। उनके लिए यह सपना साकार होना आज भी अविश्वसनीय लगता है। आफरीन कहती हैं, “जब मैंने पहली बार एवरेस्ट अभियान के बारे में सुना, तो बहुत डर लगा। यह एक कठिन शारीरिक और मानसिक चुनौती थी, लेकिन मैंने खुद से वादा किया कि कोशिश जरूर करूंगी।”

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एनसीसी से मिली प्रेरणा और दिशा

आफरीन का पर्वतारोहण का सफर 2017 में शुरू हुआ, जब वह राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) की जूनियर विंग में शामिल हुईं। आठवीं कक्षा में पहला कैंप और दसवीं में दूसरा कैंप करने के बाद आफरीन ने सीनियर डिवीजन में भी एनसीसी जारी रखा। कॉलेज की परीक्षा के कारण वह बी सर्टिफिकेट समय पर नहीं दे सकीं, लेकिन एक्सटेंशन मिलने से उन्हें एवरेस्ट अभियान का हिस्सा बनने का मौका मिल गया। आफरीन मानती हैं कि यह उनकी किस्मत और नियति थी।

Abidi Afrin’s Everest success

कठिन चयन प्रक्रिया और प्रशिक्षण

अगस्त 2024 में लेह में एवरेस्ट अभियान के लिए ट्रायल हुआ, जिसमें आफरीन का चयन हुआ। चयन प्रक्रिया बेहद कठिन थी—शारीरिक परीक्षाएं, धीरज दौड़, बैकपैक के साथ दौड़, पुश-अप्स, चिन-अप्स, सिट-अप्स और इंटरव्यू। लेह से चार लड़के और चार लड़कियों का चयन हुआ और फिर दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर 250 कैडेट्स के बीच मुकाबला हुआ। यहां से 36 कैडेट्स चुने गए, जिनमें आफरीन भी शामिल थीं।

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पर्वतारोहण की असली परीक्षा: अबी गामिन और सियाचिन

इसके बाद टीम को उत्तराखंड के माउंट अबी गामिन (7,355 मीटर) पर प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। यहां तंबू लगाना, खाना बनाना और कठिन परिस्थितियों में रहना सिखाया गया। लंबी दूरी पैदल चलना और भारी बैग उठाना आफरीन के लिए असली परीक्षा थी। अंतिम चयन के बाद उन्हें नेहरू पर्वतारोहण संस्थान और दार्जिलिंग के हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान में उन्नत प्रशिक्षण मिला।

सबसे कठिन दौर सियाचिन में आया, जहां जमा देने वाली ठंड, तेज हवाएं और ऊंचाई ने मानसिक और शारीरिक रूप से टीम को चुनौती दी। आफरीन बताती हैं, “इतनी ऊंचाई पर भी हमें दौड़ाया जाता था। वहां मेरा मानसिक संतुलन बिगड़ गया था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी।”

अभियान की शुरुआत और टीम का चयन

इस अभियान का विचार एनसीसी के उप-महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल गुरबीर पाल सिंह के मन में आया था। कर्नल अमित बिष्ट ने कैडेट्स की खोज और चयन के लिए देशभर की यात्रा की। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के कैडेट्स ने मिलकर ट्रायल दिया। चयन के बाद, टीम को उन्नत पर्वतारोहण प्रशिक्षण के लिए भेजा गया, जिससे सभी कैडेट्स को कठिन परिस्थितियों से जूझने की क्षमता मिली।

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