yoga and meditation for kids- कैसे सालों जंगल में रही रुसी महिला ,जंगल में जन्मी बेटियां, योग-ध्यान से संवारा अनोखा जीवन!

नीना कुटिना ने अपनी दोनों बेटियों को जंगल में जन्म दिया और वहीं पाला। उन्होंने बेटियों को योग, ध्यान, चित्रकला और आध्यात्मिक शिक्षा दी। परिवार का जीवन जंगल के प्राकृतिक संसाधनों और इंस्टेंट नूडल्स पर निर्भर रहा। वे तीनों प्लास्टिक शीट पर सोती थीं, जिससे जंगल की नमी और कीड़ों से बचाव होता था। नीना का मानना है कि प्रकृति की गोद और परिवार का साथ सबसे बड़ा सुख है। बेटियाँ हर दिन योग और ध्यान करतीं, जिससे उनमें आत्मविश्वास और रचनात्मकता का विकास हुआ।

नीना कुटिना की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को जंगल में जन्म दिया, जहाँ न तो कोई अस्पताल था और न ही आधुनिक सुविधाएँ। नीना का मानना है कि प्रकृति की गोद में जन्म लेना बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित और शुद्ध अनुभव होता है। जंगल की ताजगी, शुद्ध हवा और प्राकृतिक वातावरण ने उनकी बेटियों को एक अनूठा जीवन दिया।

योग और ध्यान से मिली मानसिक शक्ति

नीना ने अपनी बेटियों को छोटी उम्र से ही योग और ध्यान की शिक्षा देना शुरू कर दिया। उनका मानना है कि योग और ध्यान न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि मानसिक संतुलन के लिए भी जरूरी हैं। बेटियाँ हर सुबह जंगल की शांति में योगासन करतीं और ध्यान लगातीं, जिससे उनमें आत्मविश्वास और सकारात्मकता का विकास हुआ। नीना खुद भी योग प्रशिक्षक रह चुकी हैं, जिससे बेटियों को सही मार्गदर्शन मिला।

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चित्रकला और आध्यात्मिक शिक्षा का अद्भुत संगम

नीना ने बेटियों को न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि उनकी रचनात्मकता को भी पंख दिए। जंगल की हरियाली, पशु-पक्षी और प्राकृतिक दृश्य उनकी चित्रकला के विषय बन गए। बेटियाँ मिट्टी, पत्तों और प्राकृतिक रंगों से चित्र बनातीं और अपनी कल्पना को साकार करतीं। साथ ही, नीना ने उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा भी दी, जिससे वे जीवन के गहरे अर्थ को समझने लगीं।

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जीवनयापन के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सहारा

नीना और उनकी बेटियाँ अपने जीवनयापन के लिए जंगल के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहीं। भोजन के लिए वे इंस्टेंट नूडल्स का इस्तेमाल करती थीं, जो आसानी से बन जाता था और जंगल में उपलब्ध सामग्री के साथ मिलाकर पौष्टिक भी हो जाता था। इसके अलावा, वे जड़ी-बूटियों, फल-फूल और कंद-मूल का भी सेवन करती थीं। इस तरह, उनका खानपान पूरी तरह प्राकृतिक और संतुलित रहा।

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