Uttarakhand news- उत्तराखंड में 5000 से ऊपर खरीद पर सरकारी आदेश से नाराज़गी

उत्तराखंड सरकार ने नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों को 5000 रुपये से अधिक की किसी भी खरीद या बिक्री के लिए विभागाध्यक्ष की अनुमति लेनी होगी। इसमें रोजमर्रा की चीज़ें भी शामिल हैं। इस आदेश के विरोध में कर्मचारी संगठन लामबंद हो गए हैं और उन्होंने इसे अव्यवहारिक करार दिया है। संगठन की मांग है कि इसकी सीमा 1 लाख रुपये की जाए। सरकार का कहना है कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी, मगर कर्मचारी इसे निजी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मान रहे हैं और लगातार विरोध जता रहे हैं।

उत्तराखंड सरकार के हालिया आदेश के बाद राज्यभर के सरकारी कर्मचारी विरोध में सामने आ गए हैं। सरकार ने निर्देश जारी किया है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी यदि पांच हजार रुपये से अधिक की कोई भी खरीददारी या संपत्ति की बिक्री करता है, तो उसे अपने विभागाध्यक्ष या वरिष्ठ अधिकारी से पूर्व अनुमति लेना जरूरी होगी। इसमें सिर्फ अचल संपत्ति ही नहीं, बल्कि टीवी, फ्रिज, मोबाइल, कपड़े जैसी रोजमर्रा की चीजें भी शामिल हैं। कर्मचारियों का मानना है कि इस आदेश से उनकी निजी स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है और यह असुविधाजनक है।

पुराना नियम फिर से लागू, लोगों में असंतोष

हालांकि, यह नियम नया नहीं है। सरकारी नियमावली के अनुसार, करीब 23 वर्ष पहले भी ऐसा प्रावधान रखा गया था, लेकिन अब शासन ने इसे फिर से कड़ाई से लागू करने के आदेश जारी किए हैं। सभी विभागाध्यक्षों को लिखित निर्देश भेजे जा चुके हैं कि वे अपने अधीनस्थों की संपत्ति की जानकारी रिकॉर्ड करें और आवश्यकता पड़ने पर प्रत्येक पांच साल में इसकी घोषणा भी कर्मचारी से करवाएं।

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कर्मचारी संगठन ने उठाई आवाज़

उत्तराखंड एसटी-एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम ने इस आदेश को अव्यवहारिक और मजाकिया करार दिया है। उनकी मांग है कि खरीद-बिक्री की सीमा बढ़ाकर एक लाख रुपये की जाए, ताकि ​​कर्मचारियों को छोटी-छोटी निजी खरीद पर अनुमति लेने की जरूरत न हो। कई कर्मचारी संगठनों ने इस आदेश पर पुनर्विचार की मांग करते हुए कहा है कि इतने कम मूल्य की वस्तुओं पर अनुमति अनिवार्य करना, कार्य में बाधा और कर्मचारियों के मनोबल में कमी ला सकता है।

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सरकार की दलील: पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी

सरकार का कहना है कि सरकारी सेवकों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए यह आदेश जरूरी है। विभागाध्यक्ष को अधिकार है कि वह किसी भी समय अधीनस्थ कर्मचारी से संपत्ति विवरण मांग सकता है। संपत्ति की घोषणाओं को नियमित और रिकॉर्ड में रखना भ्रष्टाचार नियंत्रण का अहम हथियार माना जा रहा है।

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