What is police custody and judicial custody-पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी क्या होती है कैसे मिलती है जानिये|

What is police custody and judicial custody- भारत में  क्रिमिनल केस का ट्रायल कैसे होता है आपको यह बताने के क्रम में हम आज आपको बताएंगे कि पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत का मतलब क्या होता है और यह कैसे मिलती है पुलिस हिरासत में जब किसी आरोपी को लिया जाता है तो उसके साथ क्या होता है और न्यायिक हिरासत में जब आरोपी को लिया जाता है तो उसके साथ क्या किया जाता है ये सारी जानकारी आपको इस ब्लॉग में पढ़ने को मिलेगी|

What is police custody and judicial custody– हमारे पिछले ब्लॉग में आपने जाना है कि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद पुलिस उस उसका मेडिकल कैसे करवाती है और मामले की जांच कैसे की जाती है इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे की  गंभीर अपराध में गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस आरोपी को नजदीकी मजिस्ट्रेट के पास में पेश करती है तब उसके साथ क्या होता है उसे मजिस्ट्रेट का पुलिस कस्टडी में भेजते हैं और कब उसे न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है बहुत ही आसान भाषा में हम आपको सारी बातें समझाएंगे|

Legal rights during police custody and judicial custody

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What is police custody and judicial custody-पुलिस हिरासत क्या होती है

गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 187 की अंतर्गत पुलिस को 24 घंटे के अंदर नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है   इसके अंतर्गत भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 187(3) के तहत मजिस्ट्रेट के पास इस बात की शक्ति होती है कि वह आरोपी को पुलिस कस्टडी या न्यायिक हिरासत में भेज सकता है|

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What is police custody and judicial custody-पुलिस कस्टडी कितने दिनों की होती है 

पुलिस कस्टडी की अवधि 15 दिन से अधिक नहीं हो सकती पुलिस कस्टडी का मतलब यह होता है कि आरोपी को पुलिस को सौंप दिया जाता है जिससे कि आरोपी से पुलिस पूछ्ताछ करती है किअपराध कब हुआ था क्या हथियार इस्तेमाल किया गया था वह चाहे तो सीन को रीक्रिएट भी कर सकती है|

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What is police custody and judicial custody-क्या होती है न्यायिक हिरासत

 अगर पुलिस मजिस्ट्रेट से न्यायिक हिरासत के बजाय पुलिस कस्टडी की मांग करती है और  मामला उतना गंभीर नहीं लगता तो मजिस्ट्रेट आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेज देती है न्यायिक हिरासत का मतलब ये होता है कि आरोपी को जेल दाखिल करा दिया जाता है और  आरोपी पर पुलिस का नियंत्रण पूरी तरीके से खत्म हो जाता है अगर भविष्य में आरोपी से किसी भी प्रकार की पूछ्ताछ करनी होती है तो पुलिस को पहले मजिस्ट्रेट के पास आरोपी की कस्टडी मांगने के लिए अर्जी देनी पड़ती है|

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 What is police custody and judicial custody-किन मामलों का विचारण कर सकते हैं मजिस्ट्रेट

 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 23 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को महज तीन वर्ष तक की सजा , ₹10,000 के जुर्माने , सामाजिक सेवा दंड वाले अपराध का विचारण करने की शक्ति है परंतु भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 22 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को प्राथमिक स्तर की कार्यवाही करने के बाद मामले को सेशन कोर्ट यानी की सत्र न्यायालय को सुपुर्द करना होता है|

Role of magistrates in police and judicial custody

What is police custody and judicial custody-सत्र न्यायालय की शक्ति 

मामले का विचारण सत्र न्यायालय के जज के द्वारा किया जाता है जिनके पास भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 22 के तहत मृत्युदंड तक देने की शक्ति होती है वह चाहे तो आरोपी को उम्रकैद भी दे सकते हैं हालांकि इसका सत्यापन माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा कराया जाना आवश्यक होता है|

What is police custody and judicial custody-क्या पुलिस आरोपी के साँथ  कर सकती है मारपीट

 भारत में जो सबसे ज्यादा प्रश्न पूछा जाता है वह यह है कि क्या पुलिस गिरफ्तार किए गए आरोपी के साथ मारपीट कर सकती है या नहीं देखिये कानूनी तौर पर तो पुलिस आरोपी के साथ मारपीट या उसके साथ कोई ज़ोर जबरदस्ती भी नहीं कर सकतीं लेकिन यह सिर्फ कानून तक ही सीमित है जब भी आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है तो थोड़ा बहुत स्वागत पुलिस के द्वारा किया ही जाता है हालांकि अगर पुलिस मारपीट करती है तो उसकी शिकायत आप मजिस्ट्रेट के पास या सत्र न्यायालय में कर सकते हैं|

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