Chitrakoot donkey fair history- दीपावली के बाद चित्रकूट में आयोजित यह तीन दिवसीय गधा मेला मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल से लगभग 350 वर्षों से चली आ रही है। कहा जाता है कि सन् 1670 में जब औरंगजेब ने चित्रकूट पर आक्रमण किया था, तो उसकी सेना के घोड़े बीमार पड़ गए थे। सेना और निर्माण कार्य के लिए गधों की आवश्यकता पड़ी, जिसके कारण मेले की शुरुआत हुई थी। तब से यह मेला दीपावली के बाद मंदाकिनी नदी के तट पर हर साल शान से लगता है और आज यह देश का दूसरा सबसे प्रसिद्ध पशु मेला है।
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व्यापारियों का भारी जमावड़ा
इस वर्ष भी मेले में उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, मध्य प्रदेश और यहां तक कि अफगानिस्तान से भी व्यापारी 300 से अधिक गधों, खच्चरों और घोड़ों को लेकर पहुंचे हैं। यहां पार्किंग से लेकर जानवरों के रख-रखाव की व्यापक व्यवस्था की गई है। व्यापारी जानवरों की नस्ल, ताकत और चाल देखकर खरीदारी करते हैं। मेला स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास के जिलों और पड़ोसी देशों के लिए भी आर्थिक गतिविधि का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
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महिला व्यापारियों की बढ़ती उपस्थिति
परंपरागत रूप से पुरुषों तक सीमित इस मेले में अब महिलाओं की भी भागीदारी बढ़ रही है। इस साल घूंघट में आई एक महिला व्यापारी ने अकेले ही 15 जानवर खरीदकर सबका ध्यान आकर्षित किया। इन जानवरों का प्रयोग मुख्य रूप से ईंट-भट्टे, निर्माण कार्य और माल ढुलाई में किया जाता है। महिलाओं की यह भागीदारी स्थानीय समाज में आर्थिक सशक्तिकरण का एक उदाहरण बन रही है।