सीबीआई ने देवघर कोषागार से 89 लाख रुपये की अवैध निकासी के मामले में लालू यादव, पूर्व आईएएस अधिकारी बेक जूलियस और ट्रेजरी अफसर सुबीर भट्टाचार्य की सजा बढ़ाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सीबीआई की दलील थी कि निचली अदालत ने इन मुख्य अभियुक्तों को केवल साढ़े तीन साल की सजा और पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना सुनाया, जबकि इसी मामले में सह अभियुक्त जगदीश शर्मा को सात साल की सजा और 10 लाख रुपये का जुर्माना दिया गया था। सीबीआई ने सवाल उठाया कि मुख्य अभियुक्तों को कम सजा क्यों दी गई, जबकि कानूनन सात साल तक की सजा संभव है।
Lalu Yadav fodder scam case – हाईकोर्ट में होगी विस्तृत सुनवाई
झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय और न्यायाधीश अंबुज नाथ की खंडपीठ ने सीबीआई की अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। अब इस मामले में विस्तृत सुनवाई होगी, जिसमें दोनों पक्षों की दलीलें सुनी जाएंगी। कोर्ट के इस फैसले के बाद लालू यादव की जमानत और भविष्य की राजनीति पर असर पड़ सकता है।
लालू यादव की कानूनी चुनौतियां
लालू प्रसाद यादव पहले ही चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में सजायाफ्ता हैं। देवघर ट्रेजरी के अलावा, उन्हें दुमका, डोरंडा और चाईबासा ट्रेजरी से जुड़े मामलों में भी सजा हो चुकी है। लालू यादव लंबे समय तक जेल में रह चुके हैं और फिलहाल नियमित जमानत पर बाहर हैं। अब सीबीआई की इस नई याचिका से उनकी परेशानियां फिर बढ़ सकती हैं, खासकर बिहार विधानसभा चुनाव से पहले।
अन्य दोषियों की स्थिति
सीबीआई की याचिका में छह दोषियों के नाम थे, जिनमें से आरके राणा, फूलचंद सिंह और महेश प्रसाद की मृत्यु हो चुकी है। अदालत ने शेष तीन—लालू यादव, बेक जूलियस और सुबीर भट्टाचार्य—पर ही सुनवाई करने का निर्णय लिया है। सीबीआई का कहना है कि निचली अदालत ने जिन लोगों को संरक्षण देने का आरोप लगाया, उन्हें कम सजा देना न्यायसंगत नहीं है।
राजनीतिक हलकों में बढ़ी हलचल
इस फैसले के बाद बिहार और झारखंड के राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। आरजेडी समर्थकों के साथ-साथ विरोधी दल भी इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं। अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट की विस्तृत सुनवाई और उसके फैसले पर टिकी हैं, जो लालू यादव के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम साबित हो सकता है।