क्रिकेट भारत में केवल खेल नहीं है, यह हमारे देश की धड़कन है, हर गली-मोहल्ले से लेकर स्टेडियम तक इसकी गूंज सुनाई देती है। लेकिन जब हालात संवेदनशील हों और देश हालिया त्रासदी को भूला भी न हो, तब खेल का आयोजन क्या सही संदेश देता है, यही बड़ा सवाल है। इसी सवाल को सामने लाते हुए पूर्व क्रिकेटर असावरी जगदाले ने रविवार को खेले जाने वाले मैच पर आपत्ति जताई। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि पांच महीने पहले हुए पहलगाम हमले की पीड़ा अभी ताज़ा है, ऐसे में किसी बड़े आयोजन पर दोबारा विचार होना चाहिए।
पहलगाम का जख्म अभी भरा नहीं
सिर्फ पांच महीने पहले जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में वह दिल दहलाने वाली घटना हुई थी, जिसने 26 लोगों की जान ले ली थी। मासूम और निर्दोष लोगों पर हुआ यह हमला परिवारों को अब भी टीस देता है। उस दर्द को याद करते हुए जगदाले का कहना है कि खेल का मज़ा तभी है जब समाज सुकून में हो, जब लोगों के दिलों में बेचैनी न हो। लेकिन अभी तो हालात सामान्य कहे ही नहीं जा सकते।
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बीसीसीआई के फैसले पर उठे सवाल
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई ने तय कार्यक्रम के मुताबिक मैच कराने का ऐलान किया है। लेकिन इस फैसले के साथ कई सवाल भी खड़े हो गए हैं। आलोचक पूछ रहे हैं कि क्या लोगों की सुरक्षा और भावनाओं से बड़ा कोई आयोजन हो सकता है। जब देश दर्दनाक घटना से पूरी तरह उबर भी नहीं पाया है, तब क्या सिर्फ क्रिकेट के नाम पर संवेदनाओं को किनारे लगाया जा सकता है।
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सुरक्षा का भारी बोझ
मैच जिस जगह खेला जाना है, वहां सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए जा रहे हैं। पुलिस और सुरक्षा बल हर पहलू पर चाक-चौबंद होने का दावा कर रहे हैं। लेकिन पहलगाम के अनुभव ने यह सिखाया है कि खतरा कभी पूरी तरह टलता नहीं। ऐसे में सुरक्षा के वादों पर भरोसा करने से ज्यादा ज़रूरी है यह देखना कि आम नागरिक खुद को कितना सुरक्षित महसूस करता है।
खिलाड़ी भी इंसान हैं
खेल की दौड़, रन और ताली ही सबकुछ नहीं होता। खिलाड़ी भी उन्हीं हालात से प्रभावित होते हैं जिसमें वे उतरते हैं। तनाव और भय के बीच उनके लिए मैदान पर बेखौफ उतरना कितना आसान होगा, यह भी सोचने की बात है। असावरी जगदाले ने इसी ओर इशारा करते हुए कहा कि असली खेल वही है जिसमें खिलाड़ी और दर्शक दोनों निश्चिंत होकर आनंद ले पाएं।
संवेदनशीलता और खेल के बीच संतुलन
भारत ने हमेशा मुश्किल वक्त में खेल के जरिए एकता और हौसले की मिसाल पेश की है। लेकिन हर परिस्तिथि का आकलन अलग होता है। आज जब सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं और पीड़ा ताज़ा है, तो क्यों न थोड़ा ठहरकर आगे बढ़ा जाए। खेल से बढ़कर इंसानी जिंदगियों का सम्मान है, और यही असली संवेदनशीलता है।
जनता की राय भी बंटी हुई
लोगों की राय इस विषय पर बंटी हुई है। एक ओर ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि खेल किसी भी मुश्किल परिस्थिति में हौसला देता है, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग मानते हैं कि अभी की स्थिति में आयोजन टाल देना बेहतर है। सोशल मीडिया की हर बहस में यही दो सुर सुनाई देते हैं उम्मीद और चिंता।
जिम्मेदारी का पलड़ा भारी
बीसीसीआई और सरकार दोनों ही इस निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं, जहां खेल की दीवानगी और संवेदनाओं की कसौटी एक साथ मौजूद है। जगदाले का कहना मूल रूप से इसी जिम्मेदारी की ओर इशारा है कि क्रिकेट का अर्थ केवल मनोरंजन नहीं बल्कि एक गहरा सामाजिक संदेश भी है। अब देखना यह है कि इस बार पलड़ा किसकी ओर झुकता है जनता की भावनाओं की ओर या खेल की परंपरा की ओर।
क्या होगा अगला कदम
अभी तक बीसीसीआई ने आयोजन को लेकर बदलाव की कोई घोषणा नहीं की है। तारीख नज़दीक आती जा रही है और दबाव भी बढ़ रहा है। सुरक्षा एजेंसियों और राज्य प्रशासन के बीच लगातार बैठकें हो रही हैं, लेकिन देश अब उस फैसले का इंतजार कर रहा है जिसमें केवल मैच का भविष्य नहीं बल्कि एक संदेश भी छिपा होगा, संदेश संवेदनशीलता का, जिम्मेदारी का और भरोसे का।